Tuesday 18 March 2014

आया बसंत - ऋता

82

आया बसंत

प्रकृति ने पहने

रंगीन वस्र ।

81

हल्दी से रंगे

पीले सरसों सजे

खेत भी हँसे।

80

नवजीवन

लेती अँगड़ाइयाँ

खिली कलियाँ।

79

प्रकृति रानी

पहने परिधान

फूलों से टँके।

78

पुष्प जो खिले

रंगीन तितलियाँ

झूला-सा झूलें।

77

कोमल कली

पवन का हिंडोला

लगीं झूलने।

76

जीर्ण को त्याग

नए वस्त्र पहन

नाची प्रकृति।

75

पलाश फूल

नारंगी चादर-सी

बिछा धरा पे।

74

खिली कलियाँ

बिखरी पवन में

भ्रमर-गूँज।

73

भीनी महक

आम्र-कुंज से फैली

इत्र शर्माया।

72

मँडरा उठी

भँवरों की पंक्तियाँ

खिली कलियाँ।

71

कली मुस्काए

घूँघट-पट खोले

भँवरा डोले।

70

थिरक रहीं

पुखराजी पुष्पों पे

ये तितलियाँ।

69

गूँजा है फाग

बजा भौंरों का साज

हैं ऋतुराज।

68

आई बहार

बाग-बाग हो गया

सारा ही बाग।

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