379
काक उच्चारे
आएँगे पी तुम्हारे
द्वार सजा लो।
378
आदर्श शिष्य
करे काक सी चेष्टा
विद्या का धनी।
377
दिल कोमल
नीड़ में दुलारता
पर संतति।
376
पुत्र पितर
भावों का लेन देन
वाहक काक।
375
आत्मीय मृत्यु
करे पोरसिसिया
कौआ समाज|
374
बैठा था भूखा
लुचक लिया रोटी
ठगे से हम|
373
शुभ अशुभ
दोनों एक ही पाखी
बड़ा सयाना|
372
आया बसंत
खिलता कचनार
हुआ गुलाबी|
371
हवा की गोद
कचनार की कली
करे प्रमोद|
370
सिरों पर बँटे
केन्द्र में मिले रहें
ये कचनार|
369
श्वेत घाघरा
लाल छींट की धारी
है कचनारी|
368
श्वेत चदनी
सफ़ेद कचनार
नयनसुख|
367
मस्त पवन
कचनार की खुश्बू
ले गया दूर|
366
शांत सौम्य सा
राहों में कचनार
जोहता बाट|
365
आँखों में बसी
कचनारी सूरत
पावन लगी|
364
यादों में बसा
सलोना कचनार
साथ में तुम|
363
हवा हिंडोला
जा बैठा कचनार
हौले से डोला|
*ऋता शेखर 'मधु'*
362
फागुनी ताल
रस रंग बिखरे
मन बासंती|
361
मन का जोगी
बना रूप का लोभी
गा उठा फाग|
360
खिले पलाश
जोगन वन घूमे
बासंती आस|
359
प्रीत में बसी
रंगों की छिटकन
मन भ्रमर|
358
मोहक खुश्बू
चुरा कर ले गई
बासंती हवा|
357
भीनी सुगंध
टपका बौर रस
मन बावरा|
356
बोले है कागा
कुहकी कोयलिया
पाहुन आए|
*ऋता शेखर 'मधु'*