125
जाड़े की रात
खुद को पा अकेला
चाँद भी रोया
124
कहे किससे
निज मन की बात
सिसकी रात
123
लिपटी धुंध
भयावह लगती
जाड़े की रात
122
ठिठुरा तन
एक प्याली चाय से
तृप्त है मन
121
चाय हो हाथ
गर्म चुस्की का साथ
फिर क्या बात
120
जाड़े की रात
रजाई भी हो साथ
स्वर्ग-सा लगे
119
सड़क सोई
कलरव जो सोया
जाड़े की रात
118
लगे सड़क
श्मशान-सा नीरव
जाड़े की रात
116
सिहरा पात
सुमन भी सिकुड़े
पाखी सिमटे
115
छत के बिना
बनती अभिशाप
जाड़े की रात
114
जाड़े में रंक
फ़ुटपाथ पे सोया
चुप से रोया
113
बीती है रात
मीठी -मीठी सी धूप
तन लुभाए
112
पुरानी यादें
अलाव ज्यूँ चमका
चमक उठीं
111
पूस की रात
पोर-पोर में जाड़ा
शूल -सा चुभे
110
कैसे कटेगी
पूछे वृद्धा की आँख
जाड़े की रात
109
जाड़ा निर्मोही
बहुत ही सताए
हड्डी में घुसे
108
सिर्फ़ रोशनी
सड़क गुमनाम
जाड़े की रात
107
ठंड का तीर
बेधे तन-बदन
जाड़े की रात
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