Tuesday 18 March 2014

जाड़ा निर्मोही - ऋता

125

जाड़े की रात

खुद को पा अकेला

चाँद भी रोया

124

कहे किससे

निज मन की बात

सिसकी रात

123

लिपटी धुंध

भयावह लगती

जाड़े की रात

122

ठिठुरा तन

एक प्याली चाय से

तृप्त है मन

121

चाय हो हाथ

गर्म चुस्की का साथ

फिर क्या बात

120

जाड़े की रात

रजाई भी हो साथ

स्वर्ग-सा लगे

119

सड़क सोई

कलरव जो सोया

जाड़े की रात

118

लगे सड़क

श्मशान-सा नीरव

जाड़े की रात

116

सिहरा पात

सुमन भी सिकुड़े

पाखी सिमटे

115

छत के बिना

बनती अभिशाप

जाड़े की रात

114

जाड़े में रंक

फ़ुटपाथ पे सोया

चुप से रोया

113

बीती है रात

मीठी -मीठी सी धूप

तन लुभाए

112

पुरानी यादें

अलाव ज्यूँ चमका

चमक उठीं

111

पूस की रात

पोर-पोर में जाड़ा

शूल -सा चुभे

110

कैसे कटेगी

पूछे वृद्धा की आँख

जाड़े की रात

109

जाड़ा निर्मोही

बहुत ही सताए

हड्डी में घुसे

108

सिर्फ़ रोशनी

सड़क गुमनाम

जाड़े की रात

107

ठंड का तीर

बेधे तन-बदन

जाड़े की रात

-0-

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