Wednesday 19 March 2014

थका पथिक - ऋता

196

विरासत में
शुद्ध पर्यावरण
हमने पाया ।
195
कारखानों ने
आधुनिक युग में
जाल फैलाया।
194
सघन धुआँ
लुप्त वन्य-जीवन
रास न आया।
193
कुछ न सोचा
पॉलिथिन जलाया
विष फैलाया।
192
किरणें आईं
अल्ट्रावायलेट-सी
बूढ़ी है काया।
191
हवा का धुआँ
फेफड़ों पर बड़ा
ज़ुल्म है ढाया।
190
थका पथिक
पाए विश्राम कहाँ?
मिली न छाया।
189
खाद ने छीना
फल-सब्जी का स्वाद
कोई क्या खाए।
188
कटी है डाल
पपीहा या कोयल
कोई न गाए।
187
जल अगाध
पीने योग्य है थोड़ा
करो न जाया।
186
बाग उदास
जहरीली हवाएँ
उन्हें डराएँ।
185
आई बहार
कोमल -सी कलियाँ
खिल न पाईं।
184
कोमल दूब
जमीं है पथरीली
कैसे वो झाँके?
183
मिट्टी की खुश्बू
जमे सिमेंट तले
सिसक रही।
-0- 

No comments:

Post a Comment