141
सिखों की जीत
रोशनी से नहाया
स्वर्ण मंदिर
140
गृह की लक्ष्मी
जो दें उन्हें सम्मान
वे धनवान
139
मन का तम
असंख्य दीपक भी
हर न पाते
138
संध्या का दीया
अविराम जलता
उषा को पाता
137
जलता दीया
अंधेरे से जूझता
नहीं हारता
136
प्रकाशोत्सव
नई फ़सल का भी
है ये उत्सव
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