Wednesday 31 December 2014

खिली कलियाँ|


355

चहका पंछी

जगा अरुणाचल
खिली कलियाँ|

354

भोर किरण

नव वर्ष में लाई

आस- हिरन ।

353

नवीन सत्र

ऋतुराज ले आए

नवल पत्र

352

घर पुकारे

नए साल में आना

राज दुलारे ।

351

ख्वाबों के पाखी

नव तृण चुन लो

काव्य गढ़ लो ।

350

नूतन वर्ष

कानों में कह गया

लाया हूँ हर्ष ।

Wednesday 24 December 2014

प्रातः वंदन

1.
प्रातः वंदन
वीणा संग गणेश
मंगलकारी
2.
अक्षरमाला
छन्दों की रचयिता
माँ बागेश्वरी
3.
श्रीपार्वती जी
श्री शिवशंकर जी
ब्रह्मवंदन
4.
ईश्वरकृपा
दिखते परमात्मा
अंतःकरण
5.
शंकरकृपा
सर्वत्र वंदनीय
वक्र चन्द्रमा
6.
श्रीसीताराम
गुणसमूहरूपी
पावन वन
7.
श्रीवाल्मीकि जी
कपीश्वर हनुमान
नित्य विहार|
8.
क्लेशहारिणी
कल्याण प्रतिमूर्ति
श्रीरामप्रिया|
9.
गज की माया
दृष्य जगत का सत्य
भवसागर|
10.
एक ही नौका
श्रीरामरूपी हरि
तारनहार|
11.
श्रीरामकथा
मनहर लेखन
तुलसी दास|
12.
सम्पूर्ण विश्व
श्रीराम वशीभूत
ब्रम्हादि देव|
13.
सुखानुभूति
अत्यंत मनोहर
श्रीरामकथा|
14.
करें स्मरण
सम्पूर्ण कार्य सिद्धि
गणेशकृपा|
15.
शिवजी डोले
पंगु चढ़े पहाड़
गूँगे भी बोले|

Thursday 4 December 2014

हाइकुदिवस विशेष -'' हाइकु'' पर हाइकु

349
निखर गई
हाइकु की सुरभि
बिखर गई|
348
सत्रह वर्ण
हृदय की परतें
खोलता गया|
347
नभ में चाँद
कविता में हाइकु
मनमोहक|
346
छोटी सी काया
बाते हैं बड़ी बड़ी
हाइकु यही|
345
भिड़े जुगत
सत्रह की संगत
लाती रंगत|
344
सीमित वर्ण
चमत्कारी हाइकु
व्याख्या है बड़ी|
343
हाइकुकार
शब्दों का जादूगर
रचते सार|
342
बने नौलखा
जड़ें सत्रह रत्न
हाइकुकार|
341
सिंधु मंथन
हाइकु में कथन
स्वाति की बूँद|
340
निर्बाध बहे
अल्प शब्दों में कहे
वृहद ग्रंथ|
339
सत्रहवर्णी
हाइकु निर्झरणी
हीरक कनी|
338
हाइकु कूँची
अभिव्यक्ति अम्बर
चित्र सुन्दर|

*ऋता शेखर ''मधु*

Thursday 13 November 2014

नवपल्लव

337

नव पल्लव
छूने चले हैं चाँद
बाँधो न मन

336

तितली संग
दौड़ता बचपन
निश्छल मन

335

कोमल मन
माँगे न मजदूरी
चाहे वो बस्ता

334

सुबका मन
सहमी अट्टालिका
खोखली नींव

333

बालक मन
चुन लो कुछ स्प्न
दे दो विस्तार

332

खोया आँचल
दरका बचपन
विह्वल मन

331

पोषक जड़ें
विटप का विस्तार
सुखद छाँव

330

संतुष्ट मन
कुशल व्यवहार
हीरों का हार

329

शैशव मन
मधुरता की खान
रखना मान

328

वट के तले
सोया है बचपन
निश्चिंत मन

327

नभ में चाँद
सुनकर किलका
माई की लोरी

326

ऐसी हो शिक्षा
बाल कलात्मकता
जगमगाए

325

बाल दर्पण
शीशे सा चमचम
रहे निर्मल

324

मधुर मन
चाहे अपनापन
क्यूँ हो आघात?

Sunday 14 September 2014

हिन्दी दिवस पर समर्पित कुछ हाइकु-पुष्प...


हिन्दी दिवस पर समर्पित कुछ हाइकु-पुष्प...

323.

हिंद-संविधा

चौदह सितम्बर

हिन्दी दिवस|

322.

संविधा धारा

तीन सौ तेतालिस

वर्णित हिन्दी|

321.

राष्ट्र की भाषा

लिपि देवनागरी

बोलें तो हिन्दी|

320.

गरिमामयी

लेखन में सरल

सौम्य है हिन्दी|

319.

हिन्दी दीपक

रौशन हिन्दुस्तान

फैला उजास|

318.

सुख का मूल

भारतेन्दु को प्रिय

अपनी हिन्दी|

317.

माँ सी है प्यारी

मातृभाषा हमारी

जग में न्यारी|

316.

स्वदेशी हिन्दी

राष्ट्र का हो विकास

हिन्दी ही लिखें|

315.

रिश्ता प्रगाढ़

हिन्दी में जब बोलें 

सारे ही प्रान्त|

314.

तुलसीदास

हिन्दी में रामायण

सब को मान्य|

313.

अ से अनार

इ से होती इमली

पढ़े विमली|

312.

अपनी बोली

हिन्दी होती है खास

दिल के पास|

311.

कर्ण को प्रिय

मिठास भरी हिन्दी

सहज ग्राह्‌य|

310.

सुनो संतन

है मधुर गुंजन

हिन्दी भजन|

Monday 8 September 2014

हमारा गाँव - हाइकु गीत

हमारा गाँव - हाइकु गीत
309
तरु की छाँव
पगडंडी की धूल
हमारा गाँव
308
हमारा गाँव
कूकी की कुहु कुहु
आम्र वाटिका
307
आम्र वाटिका
पुरवाई ले आई
खुशबू भीनी 
306
खुशबू भीनी
झूमे गेहूँ की बाली
मस्त झकोरे
305
मस्त झकोरे
बरगद की छाँव
जमी चौपाल
304
जमी चौपाल
गूँजे हँसी ठहाके
अपनापन
303
अपनापन
सुख दुख के साथी
ग्राम के वासी
302
ग्राम के वासी
ग्रामीण परिवेश
सौम्य सरल
301
सौम्य सरल
ग्रामीण बालिकाएँ
लहँगा चुन्नी
300
लहँगा चुन्नी
मेले में इठलातीं
चूड़ियाँ लातीं
...............................
अन्य हाइकु-
299
चली रहट
बैलों की जोड़ी चली
चली जिन्दगी
298
ब्रह्म मुहुर्त
गगन में लालिमा
जगे कृषक
297
बजी चूड़ियाँ
रसोई की खनक
चुल्हे के धुँए
296
नन्ही बालाएँ
साइकिल-कतार
विद्या की ओर
295
हाट-बाजार
हरी हरी सब्जियाँ
शुद्ध पोषक
294
गाँव की बेटी
बैलगाड़ियाँ चली
पल विदाई
293
नई नवेली
रस्म मुँह-दिखाई
दहेज चर्चा
292
मक्के की रोटी
खेतों की ओर चली
चुन्नी में बँधी|
291
गाँव की नारी
करतीं हस्ताक्षर
होतीं निहाल
290
दादी की गोदी
माँ की बनी रसोई
लाडली पाई
289
कंक्रीट राह
शहरों से आ जाते
खोया है गाँव
*ऋता शेखर 'मधु'*