82
आया बसंत
प्रकृति ने पहने
रंगीन वस्र ।
81
हल्दी से रंगे
पीले सरसों सजे
खेत भी हँसे।
80
नवजीवन
लेती अँगड़ाइयाँ
खिली कलियाँ।
79
प्रकृति रानी
पहने परिधान
फूलों से टँके।
78
पुष्प जो खिले
रंगीन तितलियाँ
झूला-सा झूलें।
77
कोमल कली
पवन का हिंडोला
लगीं झूलने।
76
जीर्ण को त्याग
नए वस्त्र पहन
नाची प्रकृति।
75
पलाश फूल
नारंगी चादर-सी
बिछा धरा पे।
74
खिली कलियाँ
बिखरी पवन में
भ्रमर-गूँज।
73
भीनी महक
आम्र-कुंज से फैली
इत्र शर्माया।
72
मँडरा उठी
भँवरों की पंक्तियाँ
खिली कलियाँ।
71
कली मुस्काए
घूँघट-पट खोले
भँवरा डोले।
70
थिरक रहीं
पुखराजी पुष्पों पे
ये तितलियाँ।
69
गूँजा है फाग
बजा भौंरों का साज
हैं ऋतुराज।
68
आई बहार
बाग-बाग हो गया
सारा ही बाग।
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