पग जोशीले - ऋता
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जोशीले पग
वतन के रक्षक
रुकें न कभी।
27
रुकें न कभी
धड़कन दिलों की
सूर्य का रथ।
26
सूर्य का रथ
उजालों की सवारी
धरा की आस।
25
धरा की आस
नभ से मिली नमी
उर्वर हुई।
24
उर्वर हुई
सुनहरी बालियाँ
स्वर्ण जेवर।
23
स्वर्ण जेवर
झनके झन झन
वधू-कंगना।
22
वधु कंगना
झूम उठे अँगना
घर की शोभा।
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घर की शोभा
मर्यादा का बंधन
गृह रक्षित।
20
गृह रक्षित
देहरी पर दादा
अनुशासन।
19
अनुशासन
घर का आभूषण
घर चमके।
18
घर चमके
अमृत वाणी बूँद
सदा अमर।
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