Friday 30 December 2016

लहर

576
तनिक ठहर
ओ जीवन लहर
जी लूँ जी भर
575
जीवन सिंधु
सुख दुःख दो तट
प्रेम लहर
574
तट से बँधी
सागर की लहरें
व्याकुल मन
573
रंग जोगिया
देशभक्ति लहर
फूल पलाश
572
ऊँचा गगन
पवन की लहर
फहरा ध्वज
571
खिले मोगरे
सुगंधों की लहर
ले चली हवा
570
सात रंगों की
लहरदार चुन्नी
इंद्रधनुष
569
प्रसवकाल
दर्द की लहर में
अद्भुत खुशी
568
शांत झील में
कंकड़ की लहर
वर्तुलाकार
567
सागर तट
कहती हैं लहरें
अथाह दर्द
566
रेतीले तट
लहरों की सौगात
असंख्य सीप
--ऋता शेखर ‘मधु’

Tuesday 27 December 2016

जले अलाव


565
जले अलाव
गप शप में सिंकी
यादों की लिट्टी
564
केंद्र अलाव
परिधि पर जुटी
सर्द हथेली
563
शीत लहर
गुलबंद लपेटो
आठो पहर
562
खुले दरीचे
सरसरा के आए
शीत के खत
561
हीरों का हार
वल्लरी पर सजी
ओस की बूँदें
560
धूप से डरी
कोमल शबनम
फुर्र से उड़ी
559
धूमिल उषा
कुहासों के जाल में
फँसा है रवि
558
ममता मोक्ष
धुंध के आर पार
विपक्षी दल
557
धुंध की शक्ति
विमान सेवा ठप्प
पटरी सूनी
556
कमल पुष्प
अंकशायिनी ओस
पवित्र प्रेम
555
दिखी न कार
धुंध के उस पार
दिखे दो बल्ब
--ऋता शेखर 'मधु'

Saturday 24 December 2016

ओ पंछी परदेसी

554
युगल मैना
प्रतीक मिलन का
हर्ष संकेत
553
शांति का दूत
धैर्यवान कपोत
मनु का संगी
552
कीवी परिंदा
उड़ान से रहित
नारी जीवन
551
कठफोड़वा
कुरीति को छेदता
तर्कपुरुष
550
हमिंग बर्ड
दोतरफा उड़ान
नापे जहान
549
चंचल नेत्र
निलछौंहा खंजन
तराई क्षेत्र
548
शहरी लोग
आँगन में गौरैया
ढूँढती पानी
547
प्रेम के छंद
डाकिया कबूतर
भरोसेमंद
546
घर का सुग्गा
मिले न मिर्च चने
दिखाता गुस्सा
545
शुतुरमुर्ग
लम्बी डग से दौड़े
पंख समेटे
544
लौट के आना
ओ पंछी परदेसी
राह तकूँ मैं
-ऋता शेखर ‘मधु’

Saturday 17 December 2016

हाइकु में ध्वनि

543.
टूटा गुल्लक
खनखनाते सिक्के
रामू की खुशी
542.
ट्रक से गिरीं
गिट्टियाँ तोड़ रहीं
रात्रि का मौन
541.
खिलते फूल
गुनगुनाते अलि
आया बसंत
540.
श्रावण माह
नाचे मन का मोर
हवा में शोर
539.
बन्द कमरे
मुसलाधार वर्षा
शोर ले आई|
538.
ढोलक बजी
नजरों में समाए
अनाथ बच्चे
537.
कहते व्यथा
पतझर के पत्ते
बहरे लोग
536.
वर्षा ऋतु में
चीख रहे झींगुर
आदमी मौन
535.
भरे पोखर
टर्र टर्र करते
मोटे मेढक
534.
ढनमनाते
रसोई के बर्तन
चुल्हा जला है
533.
घर अँगना
खनखन कँगना
नवदुल्हन
--ऋता शेखर 'मधु'

Sunday 11 December 2016

श्रमिक हाइकु

532
सृष्टि चूनर
ईश्वर रंगरेज
छिटके रंग|
531
पावस धोबी
धो रहा फूल शूल
भेद न भाव|
530
संस्कार सोना
हया की मीनाकारी
बेटी, न खोना|
529
प्रेम के धागे
भावों की बुनकरी
वस्त्र रिश्तों के|
528
प्रात की बेला
पिरो रही मालिन
शुभ सुगंध|
527
कुशल मिस्त्री
तृण तृण सजाई
बया ने नीड़|
526
हवा धुनिया
रेशे रेशे में उड़ी
मेघों की रूई|
525
विज्ञानी सोच
लोहार की जाँबाजी
वायु में यान|
524
महँगे जूते
सस्ती सी मरम्मत
रास्ते का मोची|
523
मन में दर्जी
शब्द काटना सीना
कवि की मर्जी
522
जग सागर
मछुआरे की खुशी
जाल की मीन
-----
ऋता शेखर 'मधु'

Monday 5 December 2016

हाइकु में अनाज

521
रबी खरीफ
नक्षत्रों का हो ज्ञान
तूर की खान
520
तपता मृग
रोहिणी भी बरसे
धान हरसे
519
कृष्ण दशमी
आषाढ़ की रोपनी
धान बाहुल्य
518
खेत की माटी
अनगिन गोड़ाई
ऊख सरस
517
चना की खोंट
मकई की निराई
रंग ले आई
516
बीज की मात्रा
प्रति बीघे में गेहूँ
पाँच पसेरी
515
खेत ऊर्वर
नाइट्रोजन वृद्धि
दालों की खेती
514
अन्न नवल
मकर की संक्रांति
पोहा के संग
513
हरी चुनरी
रुपहले कुन्तल
मक्का श्रृंगार
512
खेत में बाली
कृषक के घर में
खुशी निराली
511
मूँगफलियाँ
चट चट तोड़तीं
गिलहरियाँ
--ऋता शेखर ‘मधु’

Wednesday 30 November 2016

हवा हाइकु


500
मंद समीर
कचनार की कली
हौले से हिली
499
बजी सीटियाँ
बँसवारी में सखी
है पुरवाई
498
उड़ा कपास
हवा की दिशा का
मौन इशारा
497
योग अभ्यास
पवन संग डोले
खेतों में काँस
496
बासंती हवा
उड़ता मकरंद
बौराया बाग
495
फागुन आया
रूप रस गंध की
रंगीन हवा
494
समुद्री तट
शीतल बयार में
प्रेम का झोंका
493
सुहानी भोर
पुष्प के तंतु झुके
हवा की ओर
492
लू के थपेड़े
नर्म त्वचा की मूर्छा
तपी जिंदगी
491
तेज आ़ँधी
बैडमिंटन शटल
रंक की छत
--ऋता शेखर मधु'

Sunday 27 November 2016

लोरी...हाइकु में

490
लोरी सुहानी
बुन रही है माता
रिश्ते रुहानी
489
सुन के लोरी
निंदिया रानी आई
स्वप्न सजाई।
488
रोता है लल्ला
लोरी गा रही मम्मा
चाँद का चुम्मा।
487
दूध कटोरी
गोल गोल बताशा
मधुर लोरी।
486
अनाथालय
कल्पना बन आती
लोरी की धुन।
485
लोरी तकली
काते स्वप्न के धागे
माता की गोद।
484
लोरी हिरण
कुलाँचे भर लाये
निद्रा की सेज
483
मातृ विहीन
कौन सुनाये लोरी
कहता होरी
482
गोद है सूनी
कलप जाती लोरी
करुण स्वप्न
481
लोरी सलाई
बुन रही ममता
लाडो के ख्वाब
480
लोरी गाती माँ
सूनी रात में बजी
पूजा की घंटी।
479
लोरी सहेली
दबे पाँव ले आई
शिशु पलना
-------------------
ऋता शेखर 'मधु'
अंतर्जालीय पत्रिका 'सरस्वती दीप' पर प्रकाशित

Friday 25 November 2016

हाइकु में मृग

478
निर्मल मन
स्वपोषित कल्पना
कस्तूरी मृग
477
दानव छल
स्वर्ण मृग में ढला
मोहित सिया
476
ढूँढते दृग
इत्र सुगंध स्रोत
कस्तूरी मृग
475
अभयारण्य
कृष्ण मृगों के झुण्ड
कान्हा आभास
474
स्वार्थी हृदय
आखेटक हिरण
विपन्न स्वप्न
473
चीतल खाल
सुख दुःख का घेरा
चितकबरा
472
शशिर भोर
मृग छौना सी धूप
भागती फिरे
471
दूर क्षितिज
मृग की मरीचिका
खाली है हाथ
470
लोरी में बसा
मृग- छौने का प्यार
जीवन सार
469
शिकारी व्याघ्र
सरलमना मृग
चौकस नैन
468
बारहसिंगा
दलदल का मृग
संकटग्रस्त
-------------------
ऋता शेखर ‘मधु’

Thursday 17 November 2016

चरखा

467.
देश में चर्चा
स्वाभिमानी चरखा
बापू का सखा
466.
खादी का यंत्र
चरखा पर चला
आजादी मंत्र
465.
खड़ा चरखा
आठ पाँत का चक्र
खंभे फरई
464.
चरखा चक्की
बुनियादें हैं पक्की
नींव सुदृढ़
463.
जनमानस
लोकप्रिय चरखा
हित प्रतीक
462.
एक चरखा
औसतन कताई
बत्तीस हैंक
461.
मन में गाँधी
तन पर थी खादी
मिली आजादी
460.
जनमानस
लोकप्रिय चरखा
हित प्रतीक
459.
मन तकली
यादों का सूजा लगा
कातती स्वप्न
458.
खिला कपास
तकली पर नाची
सूत की आस
457.
चाक का व्यास
तकुआ की बारीकी
चरखा न्यास

--ऋता शेखर 'मधु'

Sunday 13 November 2016

बाल दिवस

Image result for चाचा नेहरू
456
सुनाएं गीत
दृष्टिहीन बालाएँ
मन की मीत।
455
मन सशक्त
व्हील चेयर पर
चले दिव्यांग
454
खेल खिलौने
शिशुओं ने दिखाई
अबोली ख़ुशी
453
मम्मी या पापा
कौन है ज्यादा प्यारा?
मुस्काये बच्चे
452
हम खेलेंगे
बचपन जी लेंगे
बच्चे आएँग

451
बड़ों के बाप
आधुनिक बालक
बड़े चालाक


450
ऊर्जा नवल
विश्वास है प्रबल
बाल कँवल
449
एक कदम
बढ़े शिक्षा की ओर
कन्या विभोर
448
बाल लगाव
कम्प्यूटर जगत
बढ़े जुड़ाव
447
घर की खुशी
नन्ही सी किलकारी
माँ बलिहारी
446
बच्चों के प्यारे
बच्चों से करें प्यार
चाचा हमारे
445
नन्हे कदम
बढ़ते जाते आगे
बड़े हैं पीछे
444
स्वप्न से पगी
मंजिल की चाहत
बच्चों की सगी
443
मिटी थकान
बच्चे ने जब दी है
एक मुस्कान
442
बालक मन
भेद भाव से दूर
खुली किताब
441
बच्चों के साथ
नेहरू की जेब में
खिले गुलाब
--ऋता शेखर 'मधु'

Saturday 12 November 2016

शरद पूनो

440
इतरा गई
शरद की सुन्दरी
मोहक निशा
439
कतकी चौथ
छलनी से चंद्रमा
पिया दर्शन
438
पूनो कौमुदी
मुदित महारास
शरद मास
437

ग्रह की दशा

नक्षत्रों की चाल में 
जीवन अर्थ
436

पूनो की चित्रा

माह नामकरण
चैत्र के संग
435

बढ़ी मिठास

श्रावणी हरियाली
आर्द्रा की खीर
434
माह की अमा
दिवस सोमवार
पीपल पूजा


Wednesday 9 November 2016

उड़ी दुआएँ

433
उडी दुआएँ
सरहद पहुंची
माँ तपस्विनी।
432
दो दिल मिले
सरहद के पार
रिश्तों में ढले।
431
उन्मुक्त हवा
तोड़ती सरहदें
आर से पार।।।
430
दोनों फ़क़ीर
सरहद पर है
एक लकीर।
429
सरहद से
आ गया है सन्देश
प्रिया बावरी।
428
बिखेरे ज्योति
सरहद का दीप
दोनों ही ओर।
427
सूर्य रश्मियाँ
किसके रोके रुकें
एक तरफ।
426
चली बन्दूक
सरहद थर्राया
भरे ताबूत।
425
कंटीली बाड़
सरहद पे उगी
हठीली झाड़।
424
वीर जवान
सरहद के पार
दिए सबक।

Wednesday 27 April 2016

घट खाली है

423
सोंधी  खुशबू
शीतलता का मजा
माटी- घट में ।
422
माटी का घट
शीतल अहसास
है आस पास ।
421
सूखी दरारें
घट भी जलहीन
पाखी उदास ।
420
कोने में पड़े
सूखे का हाहाकार
असंख्य घड़े ।
419
घट पे कौआ
चोंच में है कंकड़
पेंदी है खाली।
418.
खो गया नीर
पनघट है रीता
राधा की पीर ।
417.
घट की तृष्णा
बूँद- बूँद में भरे
अपनापन ।
416
मिट्टी का लोंदा
तन्मय है सर्जक
घट साकार ।
415
तपती रेत
चली पनिहारिन
लेकर घड़ा ।

414
शूष्क बीज है
अँकुर नहीं फूटे
सूखा पड़ा है
413
सूखी धरती
बैल खींच न पाए
हल है भारी
-ऋता शेखर मधु'

Sunday 3 January 2016

साझा नभ के हाइकु

412.
मन मन्दिर
अंतस का उजाला
प्रार्थना दीप|

411.
हवा की दया
खुशबू बन बिखरी
पुष्प है मौन|

410.
नभ की छाँव
नर्म दूब बिछौना
दीनों का सुख|

409.
दीये की लौ
आशाओं का निशीथ
विलीन तम|

408.
ग्रीष्म की तृषा
हँसकर झेलता
गुलमोहर|

407.
प्रश्नों के घेरे
शून्य में उपजते
पाते सृजन|

406.
नींद का गाँव
स्वप्न बिछौना ठाँव
पसरी यादें|

405.
मौन अधर
कलम का संवाद
अमिट छाप|

403.
कँटीली राह
अपमान वेदना
स्वत्व का ज्ञान|

402.
धूप सघन
मातृ-स्पर्श आनंद
फुहार सम|

401.
धरा का गर्भ
बीज नर या मादा
भाव समान|

400.
विदा करे माँ
आँचल में बाँध दी
सीख पोटली|

399.
पारदर्शिता
संवाद की मिठास
सुलझे रिश्ते|

398.
टिके अतिथि
हिली घर की नींव
ध्वस्त बजट|

397.
श्रीलोलुपता
राक्षसी प्रवृत्तियाँ
दहेज मृत्यु|


396.
व्याकुल व्योम
माह भर प्रतीक्षा
पूनम हुई|

395.
चिहुँका मौन
आकुल स्तब्ध सत्य
चिल्लाता झूठ|

394..
पसारे पाँव
जीवन धूप-छाँव
जग रहस्य|

393.
म्लान में उगे
प्रभु चरण चढ़े
गुणी कमल|

392..
मन पखेरु
पहरे बेअसर
निर्भय उड़े|

391..
रिश्तों में छल
हृदय-चंद्र डसे
ग्रहण लगे| 

390.
आधुनिकता
बेख़ौफ़ अमर्यादा
सहमे वृद्ध|

 389.
कर्म की पूजा
परिश्रम आहुति
फल रसीले|

388.
ओक में श्रम
एक चिथड़ा सुख
नारी के नाम|

387..
पग बेदर्द
कहती पगडंडी
दूब का दर्द|

386.
जड़ बिछोह
बन गया अधीरसैलाबी नीर|

385.
दुर्वा की नोक
ज्यूँ काँधा हो पिता का
झूला तुहिन|

384.
सागर ध्यानी
मौजों को दे रवानी
पूर्ण चन्द्रिका|

383.
सिंधु की शांति
सुनामी का संकेत
चौकस मन

382.
नभ से उँची
सागर से गहरी
कवि कल्पना|

381.
नाप ले नभ
हौसलों की उड़ान
मन की शाक्ति|

380.
प्रसव पीड़ा
मातृत्व का गहना 
नारी श्रृंगार|