Thursday 13 November 2014

नवपल्लव

337

नव पल्लव
छूने चले हैं चाँद
बाँधो न मन

336

तितली संग
दौड़ता बचपन
निश्छल मन

335

कोमल मन
माँगे न मजदूरी
चाहे वो बस्ता

334

सुबका मन
सहमी अट्टालिका
खोखली नींव

333

बालक मन
चुन लो कुछ स्प्न
दे दो विस्तार

332

खोया आँचल
दरका बचपन
विह्वल मन

331

पोषक जड़ें
विटप का विस्तार
सुखद छाँव

330

संतुष्ट मन
कुशल व्यवहार
हीरों का हार

329

शैशव मन
मधुरता की खान
रखना मान

328

वट के तले
सोया है बचपन
निश्चिंत मन

327

नभ में चाँद
सुनकर किलका
माई की लोरी

326

ऐसी हो शिक्षा
बाल कलात्मकता
जगमगाए

325

बाल दर्पण
शीशे सा चमचम
रहे निर्मल

324

मधुर मन
चाहे अपनापन
क्यूँ हो आघात?

6 comments:

  1. Replies
    1. बहुत आभार देवेन्द्र जी !!

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  2. बचपन को सही अर्थों में परिभाषित करते सुन्दर हाइकू ! एक बार ३३६ वाले हाइकू को पुन: चेक कर लें ! दूसरी पंक्ति में छ: वर्ण हैं !

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    1. ठीक कर दिया है साधना जी...आभार आपका !!

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  3. तितली , बचपन , बरगद , नींद!
    सुन्दर !

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