288
जन्म की माया
मृत्यु की सेज पर
हँसती रही|
287
वीराना भ्रम
प्रतिध्वनित सा स्वर
क्रम में बहा|
286
अम्बर धरा
क्षितिज पर मिले
भ्रम में जिए|
286
हरि की माया
हरि रूप को पाए
छके नारद|
285
स्वप्न की इच्छा
मृग की मरिचिका
बुझे न प्यास|
284
चाहत बढ़ी
टूटे हैं कई रिश्ते
धन की माया|
283
हमारे जैसा
जग में न दूजा है
पद की माया|
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