253
समीर संग
दौड़ते सूखे पत्ते
खो के अस्तित्व|
252
पत्तों को झाड़
पतझर रचता
वन श्रृंगार
251
पत्रविहीन
ठूँठ तरु के साए
बेजान हुए|
250
आ जाना प्रिय
भेज रही हूँ पाती
पीले पत्रों पे|
249
उड़ के चले
पतझर के पत्ते
देस पिया के|
248
विकल बन
देखता पतझर
प्रेमी बसंत|
247
चुप न रहें
चर मर करते
पत्ते सूखे से|
246
डाल से टूटे
लगते न दोबारा
झड़ते पत्ते|
245
जीवन कथा
पतझर के बाद
आता बसंत|
244
चिता समान
धू धू कर जलते
पत्तों के ढेर|
243
आया है चोर
रात्रि में गूँज उठा
पत्तों का शोर|
...ऋता शेखर 'मधु'
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