Sunday, 6 April 2014

वीरान है बाग

253
समीर संग
दौड़ते सूखे  पत्ते
खो के अस्तित्व|

252
पत्तों को झाड़
पतझर रचता
वन श्रृंगार

251
पत्रविहीन
ठूँठ तरु के साए
बेजान हुए|

250
आ जाना प्रिय
भेज रही हूँ पाती
पीले पत्रों पे|

249
उड़ के चले
पतझर के पत्ते
देस पिया के|

248
विकल बन
देखता पतझर
प्रेमी बसंत|

247
चुप न रहें
चर मर करते
पत्ते सूखे से|

246
डाल से टूटे
लगते न दोबारा
झड़ते पत्ते|

245
जीवन कथा
पतझर के बाद
आता बसंत|

244
चिता समान
धू धू कर जलते
पत्तों के ढेर|

243
आया है चोर
रात्रि में गूँज उठा
पत्तों का शोर|
...ऋता शेखर 'मधु'

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