Sunday 1 March 2015

फागुनी ताल

362
फागुनी ताल
रस रंग बिखरे
मन बासंती|
361
मन का जोगी
बना रूप का लोभी
गा उठा फाग|
360
खिले पलाश
जोगन वन घूमे
बासंती आस|
359
प्रीत में बसी
रंगों की छिटकन
मन भ्रमर|
358
मोहक खुश्बू
चुरा कर ले गई
बासंती हवा|
357
भीनी सुगंध
टपका बौर रस
मन बावरा|
356
बोले है कागा
कुहकी कोयलिया
पाहुन आए|

*ऋता शेखर 'मधु'*

1 comment:

  1. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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