337
नव पल्लव
छूने चले हैं चाँद
बाँधो न मन
336
तितली संग
दौड़ता बचपन
निश्छल मन
335
कोमल मन
माँगे न मजदूरी
चाहे वो बस्ता
334
सुबका मन
सहमी अट्टालिका
खोखली नींव
333
बालक मन
चुन लो कुछ स्प्न
दे दो विस्तार
332
खोया आँचल
दरका बचपन
विह्वल मन
331
पोषक जड़ें
विटप का विस्तार
सुखद छाँव
330
संतुष्ट मन
कुशल व्यवहार
हीरों का हार
329
शैशव मन
मधुरता की खान
रखना मान
328
वट के तले
सोया है बचपन
निश्चिंत मन
327
नभ में चाँद
सुनकर किलका
माई की लोरी
326
ऐसी हो शिक्षा
बाल कलात्मकता
जगमगाए
325
बाल दर्पण
शीशे सा चमचम
रहे निर्मल
324
मधुर मन
चाहे अपनापन
क्यूँ हो आघात?
अति सुंदर।
ReplyDeleteबहुत आभार देवेन्द्र जी !!
Deleteबचपन को सही अर्थों में परिभाषित करते सुन्दर हाइकू ! एक बार ३३६ वाले हाइकू को पुन: चेक कर लें ! दूसरी पंक्ति में छ: वर्ण हैं !
ReplyDeleteठीक कर दिया है साधना जी...आभार आपका !!
Deleteतितली , बचपन , बरगद , नींद!
ReplyDeleteसुन्दर !
धन्यवाद वाणी !!
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